वे 15 दिन
वे पन्द्रह दिन
वे पन्द्रह दिन
*१४ अगस्त, १९४७*
- प्रशांत पोळ
कलकत्ता.... गुरुवार. १४ अगस्त
सुबह की ठण्डी हवा भले ही खुशनुमा और प्रसन्न करने वाली हो, परन्तु बेलियाघाट इलाके में ऐसा बिलकुल नहीं है. चारों तरफ फैले कीचड़ के कारण यहां निरंतर एक विशिष्ट प्रकार की बदबू वातावरण में भरी पड़ी है.
गांधीजी प्रातःभ्रमण के लिए बाहर निकले हैं. बिलकुल पड़ोस में ही उन्हें टूटी – फूटी और जली हुई अवस्था में कुछ मकान दिखाई देते हैं. *साथ चल रहे कार्यकर्ता उन्हें बताते हैं कि परसों हुए दंगों में मुस्लिम गुण्डों ने इन हिंदुओं के मकान जला दिए हैं. गांधीजी ठिठकते हैं, विषण्ण निगाहों से उन मकानों की तरफ देखते हैं और पुनः चलने लगते हैं.* आज सुबह की सैर में शहीद सुहरावर्दी उनके साथ नहीं हैं, क्योंकि उस हैदरी मंज़िल में रात को सोने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई. आज सुबह ११ बजे वह आने वाला है.
एक कार्यकर्ता उन्हें सूचित करता है कि ‘गांधीजी द्वारा आव्हान किए जाने की वजह से पूरे कलकत्ता शहर में हिंदुओं और मुसलमानों की संयुक्त रैलियाँ निकल रही हैं. *कल दिन भर से कलकता में दंगों की एक भी खबर नहीं आई है.’*
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कराची. सुबह के नौ बजे हैं...
साधारण से दिखाई देने वाले, परन्तु फिर भी भव्य ‘असेम्बली हॉल’ में काफी अफरातफरी मची हुई है. कुछ ही पलों में आधिकारिक रूप से पाकिस्तान अस्तित्त्व में आने जा रहा है.
शंख की आकृति वाले इस सभागृह में विभिन्न प्रकार के लोग बैठे हैं. ये सभी लोग अपने-अपने क्षेत्रों के नेता हैं. इनमें पठान हैं, अफरीदी हैं, वजीर हैं, महसूद हैं, पंजाबी भी हैं, बलूच हैं, सिंधी और बंगाली भी हैं. डेढ़ हजार मील दूर रहने वाले ये बंगाली अन्य लोगों से थोड़े अलग दिखाई दे रहे हैं.
लॉर्ड माउंटबेटन अपनी नौसेना अधिकारी वाली पूर्ण यूनिफॉर्म में मौजूद हैं. पहला भाषण उन्हीं को करना है. उनका भाषण लिखने वाले सज्जन हैं, जॉन क्रिस्टी. एक-एक शब्द के उच्चारण पर जोर देते हुए माउंटबेटन ने बोलना शुरू किया, *“पाकिस्तान का उदय यह एक ऐतिहासिक घटना है.* प्रत्येक इतिहास कभी किसी हिमखण्ड की तरह धीमी गति से तो कभी पानी के जोरदार प्रवाह की तरह तेजी से आगे बढ़ता है. हमें केवल इतिहास के प्रवाह की अड़चनें दूर करते हुए इन घटनाओं के प्रवाह में स्वयं को झोंक देना चाहिए. अब हमें पीछे नहीं देखना है, हमें केवल आगे भविष्य की ओर देखना चाहिए.”
भावशून्य एवं कठोर चेहरे वाले जिन्ना की तरफ देखते हुए माउंटबेटन आगे कहते हैं” कि इस अवसर पर मुझे मिस्टर जिन्ना को धन्यवाद ज्ञापन करना है. हम दोनों के बीच मित्रता और आत्मीयता है, इस कारण आगे भविष्य में भी हमारे सम्बन्ध अच्छे बने रहेंगे, इसका मुझे पूरा विश्वास है.”
आज जिन्ना को कुछ खास नहीं बोलना हैं. वे अपने संक्षिप्त भाषण के लिए खड़े हुए. चमकदार और शानदार शेरवानी. गले तक बटन बन्द की हुई. एक ही आंख पर लगाया जाने वाला चश्मा और वह भी नाक के आधार पर टिका हुआ. जिन्ना ने बोलना आरम्भ किया... “ब्रिटेन और उनके द्वारा निर्माण किए गए उपनिवेश आज भले ही इनका सम्बन्ध विच्छेद हो रहा है, परन्तु हमारा परस्पर स्नेहभाव आज भी जागृत है. *पिछले तेरह सौ वर्षों से अस्तित्त्व में रहे हमारे पवित्र इस्लाम की तरफ से मैं आपको वचन देता हूं कि पाकिस्तान में अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता का पालन किया जाएगा.* हमारे पड़ोसी राष्ट्रों एवं दुनिया के अन्य सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध निर्माण करने की दिशा में पाकिस्तान कभी भी पीछे नहीं रहेगा....!”
इस छोटेसे भाषण के पश्चात, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल के रूप में उन्हें शपथ ग्रहण करनी थी, वह उन्होंने ली.... *और इसी के साथ आधिकारिक रूप से पाकिस्तान नामक एक राष्ट्र का उदय हुआ...!*
अब इस कड़ी में अगला चरण था, जुलूस का. एक सजीधजी, काले रंग की और खुले छत वाली, रोल्स रॉयस कार में यह जुलूस निकलने वाला था. असेम्बली हॉल से गवर्नर हाउस तक, अर्थात जिन्ना के वर्तमान निवास स्थान तक. केवल तीन मील की दूरी थी. दोनों तरफ जनता खड़ी थी. गाड़ी की पिछली सीट पर जिन्ना और लॉर्ड माउंटबेटन बैठे हुए थे. इक्कीस तोपों की सलामी दी गई और गाड़ी धीरे-धीरे आगे सरकने लगी. कुछ दूर चलने के बाद कार हलके से वेग के साथ चलने लगी थी.
*जिन्ना और माउंटबेटन दोनों को ही ऐसा प्रतीत हो रहा था की कहीं इस भीड़ में से कोई उन पर बम न फेंक दे, क्योंकि रास्ते पर कार के दोनों तरफ काफी भीड़ थी.* हजारों लोग जिन्ना और पाकिस्तान की जयजयकार कर रहे थे. थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पुलिस वाले और सैनिक खड़े थे. तीन मील की यह दूरी लगभग पौने घंटे में पूर्ण हुई.
गवर्नर हाउस के मुख्य द्वार पर कारों के रुकने के पश्चात, सदैव कठोर चेहरा रखने वाले जिन्ना ने हल्की सी मुस्कान के साथ अपना हड्डियों के ढ़ांचे जैसा हाथ माउंटबेटन के घुटने पर रखा और बोले... “इंशा अल्लाह... मैं आपको जीवित वापस ला
सका...!”
माउंटबेटन, जिन्ना की तरफ देखते ही रह गए. वे मन ही मन विचार करने लगे कि कौन, किसको जीवित लाया है..? 'अरे बदमाश... मेरे कारण ही तू यहां तक जीवित वापस आया है...!’
श्रीनगर... सुबह के दस बजे हैं..
शहर का मुख्य पोस्ट ऑफिस. (जी.पी.ओ.). *पोस्ट के अधिकारी पाकिस्तान का झण्डा कार्यालय पर लगा रहे हैं.* वहीं पर खड़े संघ के दो स्वयंसेवक यह देख कर तत्काल पोस्ट मास्टर से जवाब-तलब करते हैं, कि ‘आप पाकिस्तान का झण्डा यहां कैसे लगा सकते हैं..? अभी महाराज हरिसिंह ने कश्मीर का विलय पाकिस्तान में नहीं किया है.’
इस पर उस मुस्लिम पोस्ट मास्टर ने शान्ति से जवाब दिया कि *‘अभी श्रीनगर पोस्ट ऑफिस, सियालकोट सर्कल के अंतर्गत आता है. और अब चूंकि सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन चुका है, इसलिए इस पोस्ट ऑफिस पर हमने पाकिस्तान का झण्डा लगा दिया.’*
*दोनों स्वयंसेवकों ने, जम्मू-कश्मीर के प्रांत संघचालक प्रेमनाथ डोगरा को यह सूचना दी.* डोगरा जी ने तत्काल महाराज हरिसिंह के कार्यालय में जिम्मेदार अधिकारियों तक यह बात पहुंचा दी... और दस-पन्द्रह स्वयंसेवकों को मुख्य पोस्ट ऑफिस की तरफ भेजा. इन स्वयंसेवकों ने उस पोस्ट मास्टर को समझाया, *और अगले आधे घंटे में पाकिस्तान का झण्डा उतार लिया गया.*
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कराची.... दोपहर के दो बजे हैं...
सुबह वाले समारोह के ‘दरबारी’ कपड़े बदलने के बाद, लॉर्ड माउंटबेटन और लेडी माउंटबेटन दोनों ही दिल्ली जाने के लिए निकले हैं. दोनों ही प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे हैं. उन्हें आज रात को भारत के राज्यारोहण समारोह में उपस्थित रहना है. कायदे आज़म जिन्ना और उनकी बहन फातिमा ने इस अंग्रेज दम्पति को विदाई दी.
*इस प्रकार नवनिर्मित पाकिस्तान के पहले राजनैतिक, अतिथि के रूप में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन, जिन्ना को अलविदा कह रहे थे.*
कलकत्ता हवाई अड्डा... दोपहर के तीन बज रहे हैं....
विभाजित बंगाल, अर्थात ‘पश्चिम बंगाल’ के गवर्नर नियुक्त किए गए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का विशेष विमान आज दिल्ली से आने वाले है. आज रात को ही राजाजी का शपथग्रहण समारोह होने वाला है. हवाईअड्डे पर काँग्रेस के कुछ कार्यकर्ता एकत्रित हैं. *परन्तु उनमें कोई उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है. क्योंकि बंगाल में राजाजी का विरोध जारी है.* राजगोपालाचारी को बंगाल की जनता पर लादने के विरोध में सुभाषचन्द्र बोस के भाई और बंगाल काँग्रेस के वरिष्ठ नेता शरतचंद्र बोस ने अपना इस्तीफा पहले ही दे दिया है.
अंततः गवर्नर हाउस के कुछ अधिकारी और कर्मचारी, हवाईअड्डे से राजाजी को उनकी खास ‘गवर्नर वाली कार’ में लेकर सीधे गवर्नर हाउस पहुंचे.
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सिंगापुर....
सिंगापुर की ‘इन्डियन इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन कमेटी” ने मलय एयरवेज के साथ कल का दिवस उत्साह के साथ मनाए जाने की विशेष योजना बनाई थी. मलय एयरवेज का एक विशेष विमान, पडांग के वाटरलू स्ट्रीट के उपर से उड़ान भरने वाला था. यह उड़ान ठीक उसी समय होने वाली थी जिस समय वहां पर तिरंगा फहराए जाने का समारोह होने वाला था. इस विमान में सुभाषचंद्र बोस की ‘आज़ाद हिन्द सेना’ के सिपाही और अधिकारी... ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ की महिला सैनिक और बाल सेना के कुछ कार्यकर्ता सफर करने वाले थे. ये सभी लोग तिरंगा ध्वजारोहण के अवसर पर विमान से पुष्पवर्षा करने वाले थे.
*परन्तु ‘आज़ाद हिन्द सेना’ का नाम सामने आते ही, सिंगापुर के सिविल एविएशन विभाग ने इस विशेष कार्यक्रम पर आपत्ति उठाई और इस उड़ान को दी गई अनुमति रद्द कर दी...!* अब ‘इन्डियन इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन कमेटी” कल अलग पद्धति से स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने की योजना बनाने में लगी हुई है.
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कराची.... दोपहर के चार बज रहे हैं.
कराची की एक बड़ी सी हवेली. संघ से सम्बन्धित एक परिवार का घर हैं. घर की दो महिलाएं ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की सक्रिय सेविकाएं हैं. *इस हवेली की छत पर सेविकाओं का एकत्रीकरण कार्यक्रम रखा गया है.* कराची शहर की हिन्दू बहुल बस्तियों से सेविकाओं का आगमन जारी है. सुबह, कायदे आज़म जिन्ना और लॉर्ड माउंटबेटन की शोभायात्रा काफी पहले ही सम्पन्न हो चुकी है. इस कारण अब रास्तों पर अधिक भीड़ नहीं है. आज गुरूवार होने के बावजूद पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में स्कूल, कॉलेज सभी बन्द हैं.
हवेली की छत काफी बड़ी है. *लगभग सात-आठ सौ सेविकाएं उपस्थित होंगी. उन्हें बैठने के लिए स्थान की कमी पड़ रही है. कुछ सेविकाएं नीचे भी खड़ी हैं.* वातावरण भले ही गंभीर हो, परन्तु उत्साही भी है. शाखा लगाई जाती है. ध्वज लगाया जाता है. सेविकाओं के मन में उम्मीद जगाने और आत्मविश्वास का संचार करने वाला गीत होता है. इसके पश्चात लक्ष्मीबाई केलकर यानी मौसीजी
वं अन्य सभी मंत्रियों ने बांगला भाषा में शपथ ली.
इस कार्यक्रम को देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुई है. आज की रात वैसे भी स्वतंत्रता की रात है. इसीलिए गवर्नर हाउस आज आम जनता के लिए खोला गया है. अतः *मध्यरात्रि के इस प्रहर में भी खासी जनता जुटी हुई है. लोग बड़े उत्साह से नारेबाजी कर रहे हैं, ‘जय हिन्द’, ‘वन्देमातरम’ ‘गांधीजी जिंदाबाद’... आज तक जो गवर्नर हाउस सारे भारतीयों को, और खासकर क्रांतिकारियों को, पूरी तरह से नष्ट करने में लगा हुआ था, उसी गवर्नर हाउस में जोरशोर से ‘वंदेमातरम’ के नारे लगाने में सभी को एक विशेष आनंद, विशेष उत्साह महसूस हो रहा हैं.*
राजाजी द्वारा गवर्नर पद का कार्यभार ग्रहण करते ही, यह भारी भीड़ बेकाबू हो गई. उन्हें लग रहा था कि गवर्नर हाउस में क्या करें, क्या न करें. इसी आवेश और अति-उत्साह में यह भीड़ गवर्नर हाउस में मौजूद कीमती वस्तुएं, चांदी की कटलरी वगैरह साथ में लेकर ‘महात्मा गांधी जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए बाहर की ओर निकलने लगी...!
स्वतंत्र भारत का पहला सूर्य अभी निकला भी नहीं था, कि स्वतंत्र देश के पहले सार्वजनिक समारोह का अंत इस प्रकार से हुआ...!
- प्रशांत पोळ
अपनी धीरगंभीर आवाज़ में प्रतिज्ञा का उच्चारण करती हैं. *उसी दृढ़ता और गंभीरता के साथ सभी सेविकाएं उनके साथ प्रतिज्ञा का उच्चारण करती हैं. यह प्रतिज्ञा मन की संकल्प शक्ति का आव्हान करने संबंधी है.* कुछ समय प्रश्नोत्तर के लिए भी रखा गया है.
एक नौजवान सेविका पूछती है, कि “पाकिस्तान में हमारी इज्जत खतरे में है. हमें क्या करना चाहिए..? हम कहां जाएं..?”
*मौसीजी उन्हें अपने आश्वासक स्वरों में बताती हैं कि, “जैसे भी संभव हो हिन्दुस्तान आ जाओ. यहां से निकलकर हिन्दुस्तान कैसे पहुंचा जाए, केवल इस बात पर विचार करें. मुम्बई और अन्य शहरों में संघ ने आपके लिए व्यवस्था की हुई है, चिंता न करें. हम सभी एक ही परिवार हैं. यह कठिन समय आपस में मिलजुलकर किसी तरह निकाल ही लेंगे.”*
समारोह के अंत में अपने संक्षिप्त भाषण में मौसीजी ने कहा... *“बहनें धैर्यशाली बनें, धीरज रखें... अपनी इज्जत बचाएं... अपने संगठन पर पूरा भरोसा करें. इस कठिन समय में भी अपनी मातृभूमि की सेवा का व्रत निरंतर जारी रखें. संगठन की ताकत द्वारा, हम इस संकट से सुरक्षित रूप से निकल जाएंगे.”*
मौसीजी के मुंह से ऐसे आश्वासक शब्द सुनकर सिंध की उन सेविकाओं के मन में निश्चित रूप से एक आत्मविश्वास का निर्माण हुआ है...!
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एक बार फिर कराची...
कराची में जिन्ना-माउंटबेटन की शोभायात्रा और समारोह में हुए जयजयकार को यदि छोड़ दिया जाए, तो *पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस का कोई खास उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है.* चाँद-तारे वाला पाकिस्तान का हरा झण्डा अनेक स्थानों पर दिखाई तो दे रहा है, परन्तु केवल पश्चिम पाकिस्तान में ही. पूर्वी पाकिस्तान में चाँद-तारे वाला झण्डा लगभग नहीं के बराबर हैं. संभवतः ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि रमज़ान के अंतिम दिन चल रहे हैं.
परन्तु एक बात तो निश्चित है, कि पाकिस्तान का उदय होने के कारण, इस्लामी राष्ट्रों के बीच एक सशक्त नेतृत्व करने वाला एक देश उत्पन्न हुआ है, ऐसा सभी को लग रहा है.
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कलकत्ता. बेलियाघाट.
गांधीजी की सायंकालीन प्रार्थना का समय हो चुका है. *आज गुलाम भारत की उनकी यह अंतिम प्रार्थना होगी.* आज तक हमेशा ही गांधीजी ने ऐसी अनेक सायंकालीन प्रार्थनाओं में अनेक विषयों पर बात की है. उनके पसंदीदा विषय सूत-कताई से लेकर अणुबम के खतरों, शरीर में स्थित आंतों की संरचना, शौच स्वच्छता, ब्रह्मचर्य व्रत पालन के फायदे, भगवदगीता की शिक्षा, अहिंसा आदि अनेक विषयों पर वे बोलते रहे हैं.
स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर, ‘गांधीजी का आज क्या बोलते हैं’, इस बारे में सभी के मन में कौतूहल है... और इसीलिए आज शाम की प्रार्थना बेलियाघाट के सार्वजनिक बगीचे में होने जा रही है.
सामने खड़े लगभग दस हजार लोगों की भीड़ के सामने गांधीजी शांत स्वर में बोलने लगे, *“सबसे पहले आप सभी लोगों का मैं अभिनन्दन करता हूं कि आप लोगों ने कलकत्ता में हिन्दू-मुसलमान का विवाद मिटा दिया है.* यह बहुत ही अच्छा हुआ, क्योंकि मैं ऐसी आशा करता हूं कि यह तात्कालिक समाधान नहीं, बल्कि आप दोनों सदैव आगे भी बंधुभाव के साथ ही रहेंगे.”
“कल से हम ब्रिटिश गुलामी से मुक्त होने जा रहे हैं. परन्तु इसी के साथ आज रात से हमारा यह देश भी विभाजित होने जा रहा है. *इसलिए कल का दिन जैसे एक तरफ आनन्ददायक है, तो दूसरी तरफ दुखदायी भी है.* स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हम सभी लोगों की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाएगी. यदि कलकत्ता शहर की बुद्धि और बंधुभाव साबुत रहा, तो संभवतः हमारा देश एक बड़े संकट से बच निकलेगा. *परन्तु यदि जातीय-धार्मिक वैमनस्यता की ज्वालाओं ने इस देश को घेर लिया, तो नई-नई मिली हुई हमारी स्वतंत्रता क्या अधिक समय तक टिक सकेगी...?”*
“मुझे आपको यह बताते हुए बहुत कष्ट हो रहा है कि व्यक्तिगत रूप से मैं कल का स्वतंत्रता दिवस, आनंद से नहीं मनाऊंगा. *अपने अनुयायियों से भी मैं यही आग्रह करूंगा कि कल चौबीस घंटे का उपवास रखें, प्रार्थनाओं में अपना समय बिताएं और चरखे पर सूत-कताई करें. इससे हमारा देश बचा रहेगा.”*
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दिल्ली.... काँग्रेस मुख्यालय में शाम के छः बज रहे हैं. बारिश लगातार जारी है.
काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का प्रेस वक्तव्य प्रकाशन के लिए निकलने वाला है. इसमें अध्यक्ष आचार्य जे. बी. कृपलानी ने लिखा है कि, *“आज का दिवस हमारे लिए दुःख का दिन है. हमारी प्रिय मातृभूमि का विभाजन होने जा रहा है. लेकिन हम इससे भी उबरेंगे और एक नए भारत का निर्माण करेंगे....!*
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दिल्ली. शाम के छः बज रहे हैं.
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद का बंगला. नेहरू को छोड़कर उनके मंत्रिमंडल के अधिकांश मंत्री यहां उपस्थित हैं. रक्षा मंत्री बलदेव सिंह पंजाब के दौरे पर हैं, इसलिए वे अभी तक नहीं पहुंचे हैं. लेकिन जल्दी ही पहुंचने वाले हैं.
इस बंगले के परिसर में, आने वाले स्वतन्त्र भारत के उज्जवल भविष्य हेतु यज्ञ जारी है. वेदविद्या में पारंगत आचार्यों द्वारा यज्ञ करवाया जा रहा है. शुद्ध संस्कृत में, स्पष्ट और उंची आवाज़ में मंत्रोच्चारण जारी है. बाहर धीमी बारिश हो रही है. समूचा वातावरण एक प्रसन्न और पवित्र भावना से भर गया है.
इस यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात स्वल्पाहार ग्रहण करके सभी मंत्रियों को स्टेट कौंसिल बिल्डिंग में राज्यारोहण समारोह के लिए जाना है.
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दिल्ली.... रात के दस बजने वाले हैं...
बाहर अभी भी बारिश जारी है. स्टेट कौंसिल बिल्डिंग में संविधान सभा के सभी सदस्य, मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी धीरे-धीरे एकत्रित होते जा रहे हैं. गोलाकार सभागृह के बाहर हजारों लोग बारिश और भीगने की परवाह किए बिना अपने स्थान पर जमे हुए हैं.
सरदार पटेल, आज़ाद, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डॉक्टर आंबेडकर, बलदेव सिंह, नेहरू, राजकुमारी अमृत कौर . . . *सारे मंत्री एक के बाद लगातार आ रहे हैं और वहां उपस्थित जनता का उत्साह चरम पर पहुंचने लगा है. एक-एक मंत्री के आगमन पर उनके नाम से जयजयकार हो रहा है. लोग नारे लगा रहे हैं, ‘वन्देमातरम’, ‘महात्मा गांधी की जय’.*
सभागृह में सर्वोच्च आसन पर इस सभागृह के अध्यक्ष यानी डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद बैठे हैं. उनकी बांई तरफ, थोड़ा नीचे लॉर्ड माउंटबेटन अपने पूर्ण सैन्य पोशाक में मौजूद हैं. नेहरू ने भी सफ़ेद झक चूड़ीदार पाजामा, नई सिलवाई हुई अचकन (अर्थात बन्द गले का कोट) और उस कोट पर एक शानदार जैकेट तथा उस जैकेट में एक गुलाब... ऐसा शानदार पोशाख किया हैं.
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने सभा का आरंभ किया. *उन्होंने सभी ज्ञात-अज्ञात सैनिकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को स्मरण किया. उन्हें भी स्मरण किया, जिन्होंने इस देश की स्वतंत्रता के लिए अत्यधिक कष्ट सहे और मृत्यु का वरण भी किया.* अपने भाषण के अंत में उन्होंने महात्मा गांधी का विशेष उल्लेख किया और बताया कि *“हम सभी के गुरु और हम सभी को दिशा दिखाने वाले दीपस्तंभ जैसे हमारे गांधीजी, आज हमसे हजार मील दूर, शान्ति स्थापित करने के काम में लगातार मगन हैं...!”*
इसके बाद नेहरू बोलने के लिए खड़े हुए. उनके सूती जैकेट के बटन होल में लगा हुआ गुलाब का फूल, मध्य रात्रि के इस प्रहर में भी एकदम तरोताज़ा दिखाई दे रहा हैं.
*शांत और गंभीर आवाज़ में नेहरू ने बोलना शुरू किया... “अनेक वर्षों पूर्व हमने नियति से एक संधि की थी. आज उसकी पूर्ती, पूरी तरह से तो नहीं, लेकिन काफी हद तक करने जा रहे हैं. ठीक मध्यरात्रि बारह बजते ही, जब समूची दुनिया शान्ति के साथ नींद में होगी, तब भारत की स्वतंत्रता का एक नए युग में... नए जन्म में प्रवेश होगा...!”* नेहरू एक से बढ़कर एक सरस शब्दों से अपने भाषण की सजावट किए हुए हैं. ऐसा भाषण तैयार करने के लिए उन्होंने अनेक रातें खर्च की हैं...!
*रात के ठीक बारह बजे उस सभागृह में बैठे हुए, गांधी टोपी पहने एक सदस्य ने अपने साथ लाया हुआ शंख फूंका. उस शंखध्वनी से वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का रोम-रोम रोमांचित हो उठा. एक नया इतिहास रचा जा रहा था... एक नए युग का आरम्भ होने जा रहा था.* स्वर्ग में उपस्थित अनेक क्रांतिकारियों की आत्मा यह दृश्य देखकर तृप्त हो रही थी, शांत हो रही थी....
*भारत अब स्वतंत्र हो चुका था.*
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दिल्ली. मध्यरात्रि...
बहुत तेज़ बारिश लगातार जारी है. पुरानी दिल्ली के दरियागंज, मिंटो ब्रिज जैसे इलाकों में पानी भरना शुरू हो गया है. *ऐसी भीषण बारिश में भी ई-४२, कमला नगर स्थित संघ के छोटे से कार्यालय में, कुछ प्रचारक और दिल्ली के संघ के कुछ प्रमुख कार्यकर्ता एकत्रित हैं. उनके समक्ष अनेक मुद्दे हैं. पंजाब और सिंध से अनेक निर्वासित दिल्ली आ रहे हैं. उनकी निवास और भोजन की व्यवस्था करनी है. कल के दिन, स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुसलमानों के कुछ समूह गडबडी कर सकते हैं ऐसी भी सूचना उनके पास है. उस तरफ भी इन्हें ध्यान देना है.*
अनेक स्वयंसेवक पिछली कई रातों से सोए नहीं हैं... अगली कुछ रातें भी इनके सामने ऐसी ही अनेक चुनौतियां पेश करने वाली हैं.
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कलकत्ता. गवर्नर हाउस. आधी रात के एक बजे...
उधर दूर दिल्ली में सत्ता हस्तांतरण का कार्यक्रम सम्पन्न हो गया है, और इधर अंग्रेजों की इस पुरानी राजधानी में एक नया अध्याय लिखा जा रहा है.
*गवर्नर हाउस में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को गवर्नर के रूप में शपथ ग्रहण करवाने का कार्यक्रम शुरू होने जा रहा है.* बेहद संक्षिप्त सा कार्यक्रम. निवृतमान गवर्नर सर फ्रेडरिक बरोज़ राजगोपालाचारी को अपना कार्यभार सौंपते हैं. केवल दस-पन्द्रह मिनट के इस कार्यक्रम में राजाजी ने अंग्रेजी में शपथ ग्रहण की, परन्तु नवनियुक्त मुख्यमंत्री डॉक्टर प्रफुल्लचंद्र घोष ए*१५ अगस्त, १९४७*
- प्रशांत पोळ
आज की रात तो भारत मानो सोया ही नहीं है. दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, मद्रास, बंगलौर, लखनऊ, इंदौर, पटना, बड़ौदा, नागपुर... कितने नाम लिए जाएं. *कल रात से ही देश के कोने-कोने में उत्साह का वातावरण है.* इसीलिए इस पृष्ठभूमि को देखते हुए कल के और आज के पाकिस्तान का निरुत्साहित वातावरण और भी स्पष्ट दिखाई देता है.
रात भर शहर में घूम-घूमकर, स्वतंत्रता का आनंद लेने के पश्चात सभी लोग अपने-अपने घरों में पहुंच चुके हैं और उन्हें इंतज़ार है, आज सुबह के समाचारपत्रों का. भारत के इस स्वतंत्रता समारोह का वर्णन इन अखबारों ने कैसा किया होगा? लेकिन आज के अखबार कुछ देर से ही आए. क्योंकि सभी अखबारों को संविधान सभा के मध्यरात्रि वाले समाचार प्रकाशित करने थे. प्रत्येक अखबार ने आज आठ कॉलम का शीर्षक छापा है.
दिल्ली के ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ ने शीर्षक दिया है – India Independent : British Rule Ends.
कलकत्ता के ‘स्टेट्समैन’ का शीर्षक है – Two Dominions are Borne.
दिल्ली के ‘हिन्दुस्तान’ ने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है - ‘शताब्दियों की दासता के बाद, भारत में स्वतंत्रता की मंगल प्रभात’.
मुम्बई का ‘टाईम्स ऑफ इण्डिया’ लिखता है – Birth of India’s Freedom.
कराची से प्रकाशित होने वाले ‘डॉन’ का शीर्षक हैं – Birth of Pakistan – an Event in History.
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*कलकत्ता शहर भी रात भर जाग रहा था.* जनता को देश की स्वतंत्रता के स्वाद का अनुभव पूरी तरह से लेना था. आज कलकत्ता के वातावरण में एक चमत्कारिक बदलाव दिखाई दे रहा हैं. *कहीं से भी हिन्दू-मुस्लिम तनाव की कोई खबर नहीं हैं.* मात्र दो-तीन दिनों पहले जो हिन्दू और मुसलमान एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे, आज वही आपस में गले मिल रहे हैं. पूरे शहर में हिन्दू-मुस्लिम एकता के नारे लगाए जा रहे हैं. और *निश्चित ही इस जादुई चमत्कार का पूरा श्रेय, बेलियाघाट की हैदरी मंज़िल जैसे साधारण हवेली में बैठे गांधीजी को ही जाता है.*
हैदरी मंज़िल इन दिनों कलकत्ता वासियों के लिए एक तीर्थक्षेत्र बना हुआ है. कल से ही लोगों के जत्थे के जत्थे, भले ही दूर से ही, लेकिन गांधीजी के दर्शनों के लिए लगातार चले आ रहे हैं. आज का दिन भी ऐसा ही रहेगा, ऐसी संभावना लग रही है.
लेकिन गांधीजी के लिए आज का दिन हमेशा की तरह सामान्य ही हैं. प्रतिदिन के नियमानुसार आज भी वे तड़के तीन बजे जाग गए थे. आज उन्होंने अपने कामों की सूची में शौचालय की सफाई का कार्य जोड़ा था. यह सारे कार्य सम्पन्न करके गांधीजी रोज की तरह प्रातः भ्रमण के लिए निकले. आज दिन भर वे उपवास रखने वाले थे और अधिकांश समय सूत कताई में बिताने वाले थे.
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सिंगापुर.
इधर भारत में सुबह के साढ़े आठ बज रहे हैं, तो उधर सिंगापुर में सुबह के ग्यारह.. आर्चर रोड, वाटरलू स्ट्रीट, सेरंगून रोड जैसे इलाकों में भारतीय समुदाय ने भारत की स्वतंत्रता के उपलक्ष्य में ध्वजारोहण के बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित किए हुए हैं.
इस कार्यक्रम के लिए राष्ट्रगीत कौन सा रखना चाहिए इस बारे में भ्रम की स्थिति है. इसलिए सिंगापुर के भारतीयों ने इस गीत को भारत के राष्ट्रगीत के रूप में गाना शुरू किया है –
सुधा, सुख चैन की बरखा बरसे
भारत भाग हैं जागाI
पंजाब, अवध, गुजरात, मराठा
द्रविड़, उत्कल, बंग
चंचल सागर, विन्ध्य हिमाला
नीला जमुना गंगा
तेरे नित गुण गाये
तुझसे जीवन पायें
सब तन पाये आशा
सूरज बनकर जग पर चमके
भारत भाग हैं जागा II
जय हो, जय हो, जय हो, जय जयजयजय हो...!
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कलकत्ता. बेलियाघाट.
सुबह के नौ बजे हैं. भारत सरकार के ‘सूचना और प्रसारण मंत्रालय’ के अधिकारी, अपने सारे उपकरण लेकर गांधीजी की प्रतिक्रिया लेने के लिए आए हुए हैं. परन्तु *गांधीजी का उत्तर एकदम सपाट स्वर में है कि, “मेरे पास बताने के लिए कुछ नहीं है”,* परन्तु उन्हें फिर से आग्रह किया गया कि ‘यदि आज के दिन आप कोई सन्देश नहीं देंगे तो वह ठीक नहीं लगेगा’, इसके बावजूद गांधीजी का सीधा-सपाट सा उत्तर है कि, “मेरे पास कोई सन्देश नहीं है. यदि यह ठीक नहीं दीखता, तो ऐसा ही सही.”
कुछ देर के बाद बी.बी.सी. के प्रतिनिधि भी आए. इनका प्रसारण समूची दुनिया में होने वाला हैं. लेकिन गांधीजी ने उन्हें भी ठीक यही उत्तर दिया.
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दिल्ली. वॉईस रीगल पैलेस...
भूतपूर्व वॉईसरॉय लोगों का निवास स्थान. अर्थात राजप्रासाद. अब यह ‘गवर्नमेंट हाउस’ हो गया है. और भारत के पहले गवर्नर जनरल, लॉर्ड माउंटबेटन आज यहीं पर शपथ ग्रहण करने वाले हैं. इस गवर्नमेंट हाउस का विशाल दरबार हॉल, आज के इस अवसर हेतु काफी सजाया गया है. सुबह का समय होने के बावजूद हॉल में स्थित बड़े-बड़े लाईट और झूमर प्रकाशमान किए गए हैं.
*ठीक नौ बजे औपचारिक कार्यक्रम शुरू हुआ.
चांदी की तुरही बजाकर कार्यक्रम का आरम्भ किया गया. इसके पश्चात शंखध्वनि की गई. इस वाइसरॉय हाउस की दीवारों ने अपने जीवन में पहली ही बार तुरही और शंख की आवाज़ सुनी है.*
भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश, सर हरिलाल जयकिशन दास कानिया के सामने कड़क पोशाक में लॉर्ड माउंटबेटन खड़े हुए. उन्होंने बाईबल का चुम्बन लिया और अपनी शपथ का उच्चारण किया. पूरा दरबार हॉल, मंत्री, संविधान सभा के सदस्यों और अधिकारियों से भर गया है. लेकिन ऐसे अवसरों पर नियमित रूप से उपस्थित रहने वाले राजे-रजवाड़े आज अनुपस्थित हैं.
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कलकत्ता. बेलियाघाट
सुबह के आठ बजे गांधीजी ने सूत कताई करते-करते अपनी ब्रिटिश मित्र मिस अगाथा हैरिसन के लिए एक पत्र डिक्टेट करवाया. इसमें उन्होंने मजाक-मजाक में लिखा, ‘तुमने राजाजी के मार्फ़त भेजा हुआ पत्र मुझे मिला. ज़ाहिर है कि राजाजी स्वयं तो यहां आकर यह पत्र दे नहीं सकते थे. क्योंकि कल रात से ही उनके गवर्नर हाउस में, ‘अंग्रेजों का घर देखने के लिए’ ढेरों सर्वसामान्य जनता इकठ्ठा हुई है...!’
इसके बाद गांधीजी ने पश्चिम बंगाल के नवनियुक्त मंत्रियों के लिए एक पत्र डिक्टेट किया. इस पत्र में प्रमुखता से उन्होंने अपने पसंदीदा तत्वों, अर्थात ‘सत्य, अहिंसा और नम्रता’ का पालन करने का आग्रह किया. *‘सत्ता’ की बुराईयों के बारे में आगाह करते हुए उन्होंने लिखा, ‘ध्यान रहे कि सत्ता भ्रष्ट बनाती है... यह बात न भूलें कि आप लोग यहां गरीबों की सेवा करने आए हैं.’*
थोड़ी देर बाद, अर्थात लगभग सुबह दस बजे, पश्चिम बंगाल के नवनियुक्त गवर्नर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी गांधीजी से भेंट करने आए. यह भेंट बहुत ही ह्रदयस्पर्शी थी. *स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले दो तपस्वियों की थी यह भेंट...!*
राजगोपालाचारी ने मिलते ही गांधीजी से कहा कि, “बापू, आपका अभिनन्दन करता हूं.. आपने तो कलकत्ता में बिलकुल जादू ही कर दिया है..!” परन्तु गांधीजी का उत्तर कुछ अलग ही था. वे बोले, “परन्तु मैं अभी कलकत्ता की स्थिति से संतुष्ट नहीं हूं... जब तक दंगों की आग में झुलसे हुए सभी लोग अपने-अपने घरों को वापस नहीं लौटते, तब तक कोई खास काम हुआ है, ऐसा मुझे नहीं लगता.”
राजाजी ने कल रात को सम्पन्न हुए कार्यक्रम के किस्से सुनाए. गांधीजी का आज उपवास था, इस कारण कुछ खाने का सवाल ही नहीं उठता था. लगभग एक घंटे की भेंट के बाद राजाजी वापस निकले.
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मुंबई. दादर. सावरकर सदन.
सुबह से ही तात्याराव (यानी विनायक सावरकर) कुछ खिन्न से दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने कुछ भी खाया-पिया नहीं हैं. *खंडित भारत की कल्पना उनके सीने में गहराई तक चुभ गयी हैं.* उन्हें यह बात स्पष्ट रूप से महसूस हो रही हैं कि *‘हम अपना देश अत्यंत दुर्बल लोगों के हाथों में सौंप रहे हैं.’*
फिर भी स्वतंत्रता का आनंद तो है ही. *वह स्वतंत्रता, जिसके लिए दो-दो कालेपानी की सजा भुगती. पन्द्रह वर्षों की नजरबंदी सही. समुद्र के उस अथाह पानी में छलांग भी लगाई. अंडमान की काल कोठरी का कष्ट सहन किया. कोल्हू में बैल की तरह लगकर तेल निकाला...*
खंडित क्यूं न हों, स्वतंत्रता आज हासिल तो हुई है.
दस बजने को हैं. हिन्दू महासभा के अनेक कार्यकर्ता तात्याराव से भेंट करने आए हैं. उन सभी की उपस्थिति में क्रांतिवीर विनायक दामोदर सावरकर ने दो ध्वज फहराएं. पहला – भगवा ध्वज, जो कि अखंड हिन्दुस्तान का प्रतीक है और दूसरा, भारत का राष्ट्रध्वज यानी तिरंगा. दोनों ही ध्वजों को उन्होंने पुष्प अर्पित किए, और कुछ देर स्तब्ध खड़े रहे.
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दिल्ली. काउंसिल हाउस का गोलाकार भवन.
सुबह के साढ़े दस बज रहे हैं. *आज यहां पर आधिकारिक रूप से भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में ‘अशोक चक्र से अंकित तिरंगा’ फहराने का शासकीय कार्यक्रम है.* वॉईस रीगल पैलेस से शपथ ग्रहण किए हुए सभी मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, धीरे-धीरे काउंसिल हाउस की तरफ आने लगे हैं. यह कार्यक्रम छोटा और सादा सा ही है. थोड़ी ही देर में नेहरू यहां पर राष्ट्रध्वज फहराने आने वाले हैं.
छोटी पहाड़ी पर स्थित इस गोलाकार भवन, ‘काउंसिल हाउस’ के चारों तरफ भारी भीड़ एकत्रित हो चुकी है. ये सभी स्वतन्त्र भारत के नागरिक हैं. *अंग्रेजों के शासन में सामान्य भारतीय के लिए इस स्थान पर प्रवेश प्रतिबंधित था, परन्तु आज ऐसा नहीं है. इसीलिए कौतूहल, आनंद, उत्साह इन सभी भावनाओं से मिश्रित ये सैकड़ों लोग ‘वंदेमातरम’ के नारे लगा रहे हैं. गांधी और नेहरू की जयजयकार कर रहे हैं. आनंद और खुशी के मारे इन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें, क्या नहीं करें.*
नेहरू कार्यक्रम स्थल पर आते हैं. उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी भी उनके साथ ही हैं. एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर द्वारा पहाड़ी पर निर्मित इस ‘काउंसिल हॉल’ में पहली बार ही तिरंगा फहराया जाने वाला
है. *चूंकि अभी राष्ट्रगीत कौन सा होगा, यह निश्चित नहीं है, इसलिए सभी लोगों ने ‘वंदेमातरम’ नारे का जयजयकार करते हुए आसमान गुंजा दिया हैं...*
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लाहौर. डी. ए. वी. कॉलेज. दोपहर के दो बज रहे हैं.
*कॉलेज के परिसर और होस्टल में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित ‘पंजाब सहायता समिति’ का शरणार्थी शिविर है.* लाहौर मेडिकल कॉलेज के स्वयंसेवक चिकित्सक, विद्यार्थी, कुछ महिला डॉक्टर और नर्सों ने आपस में मिलकर बीस खटिया वाला एक छोटा सा अस्पताल चलाना शुरू किया है. समूचे पश्चिम पंजाब से हिन्दू और सिख अपनी घर-गृहस्थी, खेती-बाड़ी, दुकान-कारखाने लावारिस अवस्था में छोड़कर, सभी कुछ गंवाकर बेहद दयनीय अवस्था में इस शिविर में आते जा रहे हैं.
*कल रात से ही जहां उधर पूरा हिन्दुस्थान स्वतंत्रता समारोह उत्साह से मना रहा था, इधर परिस्थिति बहुत ही भयानक हो चली थी. हिंदुओं-सिखों के जत्थे के जत्थे अपने प्राण बचाकर इस शिविर में पहुंच रहे हैं.* उन सभी पर हुए अत्याचारों की कहानियां अक्षरशः दिमाग सुन्न करने वाली हैं, भीषण क्रोध उत्पन्न करने वाली हैं. अनेक सिखों की बहनों, पत्नियों को मुस्लिम गुण्डे उठा ले गए हैं, जबकि कुछ औरतों-लड़कियों ने कुओं में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली है.
रोज़ाना दोपहर को ठीक डेढ़ बजे, सरदार कुलवंत सिंह नामक एक संघ स्वयंसेवक इस शिविर में भर्ती घायलों के लिए भोजन लेकर आता है. यह भोजन लाहौर के ‘भाटी गेट’ नामक हिन्दू मोहल्ले में संघ के स्वयंसेवक ही तैयार करते हैं. हालांकि पिछले तीन-चार दिनों से यह भी कठिन होता जा रहा है.
आज तो सवा दो / ढाई बजने वाले हैं, फिर भी कुलवंत सिंह आया क्यों नहीं, यह देखने के लिए दीनदयाल यह स्वयंसेवक लाहौर शहर में निकला. दीनदयाल संघ के एक भाग का कार्यवाह है. बीच रास्ते में ही उसे भीड़ दिखाई दी. उसने नजदीक जाकर देखा, तो *बीच रास्ते में कुलवंत सिंह खून के तालाब में डूबा पड़ा था. पास में ही उसकी मोटरसाइकिल भी गिरी पड़ी थी. मोटरसाइकिल से कैरियर से बंधे हुए भोजन के डिब्बों में से सब्जी का रस रिस-रिसकर उसके फैले हुए खून में जाकर मिल रहा था...*
जिस समय दिल्ली के दरबार हॉल में मंत्रियों द्वारा शपथ लेने का कार्यक्रम चल रहा है, जिस समय बेलियाघाट में गांधीजी बंगाल के मंत्रिमंडल को पत्र लिख रहे हैं कि, ‘मुसलमानों को सुरक्षित रहने दो’... उसी समय, इधर लाहौर में मुस्लिम गुंडों द्वारा जख्मी हिंदुओं-सिखों के लिए भोजन पहुंचाने वाले संघ स्वयंसेवक कुलवंत सिंह की दिनदहाड़े, बीच रास्ते में चाकू घोंपकर हत्या कर दी है...!
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दिल्ली. इंडिया गेट स्थित मैदान.
यहां भी सार्वजनिक रूप से तिरंगा फहराने का एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया है. हजारों लोगों की उपस्थिति से मैदान पूरी तरह भर गया है. बारिश के कारण कहीं-कहीं कीचड़ है, परन्तु लोगों को इसकी परवाह नहीं है. उनका उत्साह और आनंद चरम पर है.
*ठीक साढ़े चार बजे नेहरू यहां पर तिरंगा फहराते हैं. अभी-अभी बारिश हुई है, इसलिए आकाश में, ऊपर की तरफ जाते हुए तिरंगे के ठीक पीछे एक सुन्दर सा इन्द्रधनुष दिखाई देने लगता है.* एक मंत्रमुग्ध करने वाला यह दृश्य है...! लॉर्ड माउंटबेटन एकटक यह अलौकिक दृश्य देखते ही रह जाते हैं...!
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कलकत्ता. बेलियाघाट... शाम के साढ़े पांच बजने वाले हैं.
गांधीजी की आज की सायं प्रार्थना बेलियाघाट के ‘राश बागान’ मैदान में आयोजित की गई है. *चूंकि स्वतन्त्र भारत में गांधीजी की यह पहली सायं प्रार्थना है, इस कारण ऐसा अनुमान है कि आज इसमें भारी भीड़ रहेगी.*
गांधीजी की जिद है कि वे पैदल ही उस मैदान तक जाएंगे. वैसे तो मैदान पास ही है. सामान्य दिनों में यहां पांच मिनट में ही पहुंचा जा सकता है. परन्तु आज मैदान में बड़ी मात्रा में लोग एकत्रित हैं. तीस हजार लोगों की क्षमता वाला मैदान पूरी तरह भर चुका है. इसलिए आज गांधीजी को मैदान में बने मंच तक पहुंचने में बीस मिनट लग गए.
प्रार्थना और सूत कताई के पश्चात गांधीजी शांत और धीमे स्वरों में बोलने लगे, “कल जो मैंने कहा था, वही मैं आज भी दोहरा रहा हूं. कलकत्ता के सभी हिंदू-मुसलमानों का मैं अभिनन्दन करता हूं. आप लोगों ने एक असंभव कार्य को संभव बना दिया है. *अब आप मुसलमानों को मंदिरों में प्रवेश दें और मुस्लिम बंधु हिंदुओं को मस्जिदों में... ऐसा करने से हिन्दू-मुस्लिम एकता और भी मजबूत होगी....!”*
“कहीं-कहीं पर मुझे अभी भी मुसलमानों को सताने के समाचार मिल रहे हैं. *परन्तु यह ध्यान रहे कि कलकत्ता और हावड़ा इन इलाकों में एक भी मुसलमान को, किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए.”*
इसके बाद गांधीजी ने कल मध्यरात्रि को, राजभवन में घटित, भीड़ द्वारा लूटपाट का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि, *“लोग यह सोच रहे हैं कि हमें स्वतंत्रता मिल गई, तो हम पर ल
गे
हुए सारे प्रतिबन्ध समाप्त हो गए. हम चाहे जैसा आचरण कर सकते हैं. परन्तु यह ठीक नहीं है.* कल रात को राजभवन में भीड़ ने जो भी किया, वह दुर्भाग्यपूर्ण था. हमें अपनी स्वतंत्रता का सही उपयोग करना चाहिए. जो भी यूरोपीय बंधु भारत में ही रहना चाहते हैं, हमें उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जो कि हमें उनके द्वारा अपेक्षित हैं.
शाम की इस प्रार्थना के बाद गांधीजी ने अपना चौबीस घंटे का उपवास, नींबू का शरबत ग्रहण करके समाप्त किया.
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अनेक वर्षों का अन्धकार समाप्त हुआ है और देश पुनः एक बार स्वतंत्र हुआ है. पिछली अनेक पीढ़ियों की गुलामी के कारण भारतीयों की दुर्बल हो चुकी मानसिकता को बदलना एक सबसे बड़ी चुनौती है.
हालांकि विभाजन तो हो चुका है, परन्तु नवनिर्मित पाकिस्तान से अधिक मुस्लिम जनसंख्या, हिंदुस्तान में अभी भी मौजूद है. डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने जनसंख्या की पूर्ण अदलाबदली की योजना का जो आग्रह किया था, उसे कांग्रेस ने ठुकरा दिया था. अभी देश के अनेक भागों में धार्मिक विद्वेष की आग लगी हुई है, और यह आगे और फैलेगी, इसकी पूरी संभावना है. विस्थापितों का प्रश्न अभी मुंह बाए खड़ा हैं.
कश्मीर का सवाल अभी भी हल नहीं हुआ है. देश के बीचोंबीच स्थित निज़ाम की रियासत आज भी हिन्दुस्तान में शामिल नहीं है और हिन्दुओं को लगातार कष्ट दे रही है. गोवा अभी भी पुर्तगाल के कब्जे में है. पांडिचेरी, चन्दनगर भी अभी हिन्दुस्तान में वापस नहीं आए हैं. उधर नेहरू की जिद के कारण खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व वाला वाला नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस भी भारत ने गंवा दिया है.
*आज के दिन स्वतत्रंता का स्वागत करते समय जब भारत का यह चित्र देखते हैं, तो हमारी छाती फटती है. ये सभी भूभाग शामिल नहीं होने से, रक्षात्मक दृष्टि से, सामरिक दृष्टि से भारत बेहद कमजोर दिखाई दे रहा है. हमारे नेतृत्व की कमज़ोरी और दूरदृष्टि नहीं होने के कारण देश के भविष्य के सामने एक बड़ा सा प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है.*
स्वतंत्र होकर यह देश जब एक नए युग में प्रवेश कर रहा है, तो इन सभी कठिन प्रश्नों की एक लंबी सूची हमारे सामने नृत्य कर रही है. एक मजबूत, दमदार और दूरदृष्टि वाले नेतृत्व के हाथों में यह देश सौंपा जाए, तभी इस देश का भविष्य उज्जवल होगा....!
- प्रशांत पोळ
_(१६ अगस्त को इस लेखमाला का अंतिम आलेख, 'पंधरा अगस्त के बाद...', सन्दर्भ सूची के साथ, प्रकाशित होगा)._
वे पन्द्रह दिन – समापन
*१५ अगस्त के बाद...*
- प्रशांत पोळ
भारत तो स्वतंत्र हो गया. विभाजित होकर..!
परन्तु अब आगे क्या..?
दुर्भाग्य से गांधीजी ने मुस्लिम लीग के बारे में जो मासूम सपने पाल रखे थे, वे टूट कर चूर चूर हो गए. *गांधीजी को लगता था, की ‘मुस्लिम लीग को पकिस्तान चाहिये, उन्हें वो मिल गया. अब वो क्यों किसी को तकलीफ देंगे..?’ पांच अगस्त को ‘वाह’ के शरणार्थी शिबिर में उन्होंने यह कहा था, की मुस्लिम नेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया हैं, की ‘हिन्दुओं को कुछ नहीं होगा’.* पाकिस्तान की असेंब्ली में जीना ने भी यही कहा था, की ‘पाकिस्तान सभी धर्मों के लिए हैं.’
*लेकिन ऐसा नहीं था. ऐसा हुआ भी नहीं. असली दंगे तो आजादी मिलने के बाद शुरू हुए.* अगस्त का अंतिम सप्ताह, सितंबर और अक्तूबर, १९४७ में जबरदस्त दंगे हुए. १७ अगस्त को रेड्क्लिफ द्वारा विभाजन की रेखा घोषित की गयी. इसके बाद भयानक रक्तपात हुआ. लाखों लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा. अपने लोगों से बिछुड़ना पडा.
*विभाजन की इस त्रासदी में लगभग दस लाख लोग मारे गए. डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए.*
इस स्वतंत्रता से हमने क्या पाया..?
*ढाका की देवी ढाकेश्वरी, अब हमारी नहीं रही. बारीसाल के कालि मंदिर में दर्शन करना और दुर्गा सरोवर में नहाना, हमारे लिए दूभर हो गया. सिख पंथ के संस्थापक गुरुदेव नानक साहब की जन्मस्थली, ननकाना साहिब, अब हमारे देश का हिस्सा नहीं रही. पवित्र गुरुद्वारा पंजा साहिब हमसे दूर हो गया. मां हिंगलाज देवी के दर्शन हमारे लिए दूभर हो गए.*
क्या पाप किया था हमने, की हमें हमारा ही देश पराया हो गया..?
‘पंजाब बाउंड्री फोर्स’ का मुख्यालय तो स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर ही, लाहौर में जला दिया गया. अक्तूबर में ‘गिलगिट स्काउट’ के मुस्लिम सिपाहियों ने विद्रोह किया और पुरे गिलगिट – बाल्टीस्तान पर कब्जा कर लिया. अक्तूबर के दुसरे पखवाड़े में, पाकिस्तानी सेना ने कबायलीयों के रूप में कश्मीर का कुछ हिस्सा हथियां लिया. अंततः २७ अक्तूबर को, महाराजा हरिसिंह ने काश्मीर के विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. १९४८ के मार्च में पाकिस्तान ने पुरे कलात के क्षेत्र पर, अर्थात बलूचिस्तान पर, बलात रूप से कब्जा कर लिया.
११ सितंबर, १९४८ को कायदे-आझम जीना का इंतकाल हुआ, और इसके ठीक एक सप्ताह के अंदर, अर्थात १७ सितंबर, १९४८ को, विशालकाय हैदराबाद रियासत को सैनिकी कारवाई करके, भारत में शामिल करवा लिया गया....
३० जनवरी, १९४८ को गांधीजी की ह्त्या की गयी. इसके पहले भी उन्हें मारने के एक / दो प्रयास हुए थे. २१ जून, १९४८ को लार्ड माउंटबेटन, भारत छोड़कर इंग्लैड वापस चले गए.
*उन पन्द्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था..!*
उन पन्द्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया....
*माउंटबेटन के कहने पर, स्वतंत्र भारत में, यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरु हमने देखे. ‘लाहौर अगर मर रहा हैं, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो..’ ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब, ‘राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’, उनसे मात्र ८०० मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख, ‘गुरूजी’, हैदराबाद (सिंध) से बता रहे थे.*
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी, सुचेता कृपलानी कराची में सिन्धी महिलाओं को बता रही थी, की ‘आपके मेकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण, मुस्लिम गुंडे आपको छेड़ते हैं’. तब कराची में ही, राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी, हिन्दू महिलाओं को संस्कारित रहकर, बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थी..! जहां कांग्रेस के हिन्दू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिन्दुस्थान भागने में लगे थे, और मुस्लिम कार्यकर्ता, मुस्लिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीँ संघ के स्वयंसेवक डट कर, जान की बाजी लगाकर, हिन्दू – सिखों की रक्षा कर रहे थे. उन्हें सुरक्षित हिन्दुस्थान में पहुचाने का प्रयास कर रहे थे.
*फरक था. बहुत फरक था. कार्यशैली में, सोच में, विचारों में... सभी में.*
लेकिन, स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगांठ पर क्या चित्र था..?
हिन्दू – सिखों को बचाने वाले स्वयंसेवक जेल के अंदर थे. उनपर झूठा आरोप लगाया गया था, गांधी ह्त्या का..! देश को एक रखने, अखंड भारत बनाएं रखने के लिए, अपनी सीमित ताकत के साथ, पूरा जोर लगाने वाले, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ पर प्रतिबंध लगा था. स्वयंसेवकोंकी हिंमत बढाने वाले, बलशाली राष्ट्र की कल्पना करने वाले, संघ के सरसंघचालक गुरुजी, भी जेल में थे. ‘अपना देश सैनिकी शक्ति से संपन्न होना चाहिए’, ऐसा आग्रह रखने वाले, क्रांतिकारियों के मुकुटमणि, वीर सावरकर भी जेल में थे....
और सत्ता किसके पास थी..? अपनी जिद के कारण, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस गवाने वाले, अभी भी ब्रिटिश सत्ता के सामने झुकने वाले, अंग्रेजी रीति रिवाजों में पूर्णतः पले -
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